24 साल बाद नई शिक्षा नीति पर जागी सरकार
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Wednesday, 1 June 2011
by Rajkiya Prathmik Shikshak Sangh - 421
राजकेश्वर सिंह, नई दिल्ली
चौबीस साल बाद सरकार को फिर नई शिक्षा नीति की जरूरत महसूस हुई है। वजह यह है कि राजीव गांधी के प्रधानमंत्रित्व काल 1986 में बनी राष्ट्रीय शिक्षा नीति मौजूदा वैश्विक चुनौतियों व इस समय रोजगार की जरूरतों पर खरी नहीं उतर रही है। लिहाजा सरकार नई शिक्षा नीति बनाने के मामले में अब और देरी नहीं चाहती। मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति को अब अपने जरूरी एजेंडे में शामिल कर लिया है। बताते हैं कि खुद सरकार का भी मानना है कि 1986 में बनी राष्ट्रीय शिक्षा नीति मौजूदा शैक्षिक परिदृश्य व रोजगार की जरूरतों के लिहाज से लगभग अप्रासंगिक हो गई है। क्योंकि बीते लगभग दो दशक में वैश्विक स्तर पर शिक्षा की दुनिया बहुत शिक्षा नीति में 1992 में मामूली बदलाव किया गया था, फिर भी उससे आज की चुनौतियों से नहीं निपटा जा सकता। ऐसे में हमें एक ऐसी नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति की दरकार है, जो न सिर्फ हमारी जरूरतों को पूरा कर सके, बल्कि वैश्विक शैक्षिक चुनौतियों से भी निपटने में सक्षम हो। यूजीसी ने मार्च में केंद्रीय व राज्यस्तरीय विश्वविद्यालयों के कुलपतियों को सम्मेलन कराया था। उस सम्मेलन में कुलपतियों ने भी यथाशीघ्र नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति बनाने का सुझाव दिया था। सूत्रों का कहना है कि सरकार अब इस पर गंभीर है, इसीलिए इसे केब के एजेंडे में शामिल किया गया है। हालांकि वह कुलपतियों के सम्मेलन के दूसरी सिफारिशों के अमल पर भी विचार-विमर्श करेगी। केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने बीते दिनों आइआइटी और आइआइएम जैसे देश के हाइप्रोफाइल संस्थानों की गुणवत्ता, उसकी फैकल्टी और वहां हो रहे शोध पर सवाल उठाए थे। वैसे भी शोध के मामले में भारत अमेरिका, जापान और यहां तक कि पड़ोसी चीन के भी सामने कहीं नहीं ठहरता।