कब जागेगा विभाग

Posted in Thursday 17 November 2011
by Rajkiya Prathmik Shikshak Sangh - 421

 बाल दिवस पर सरकारी व निजी स्कूलों में सांस्कृतिक कार्यक्रम हुए। चाचा नेहरू को नमन करके उनके आदर्शो का अनुसरण करने का संकल्प लिया गया। कार्यक्रमों में भव्यता लगातार बढ़ रही है, छात्रों की प्रतिभा को आगे लाने, तराशने-संवारने की ललक भी दिनों-दिन बलवान हो रही है। तमाम तड़क-भड़क, ताम-झाम के दौरान यत्र-तत्र मासूम बचपन किसी कोने में सिसकता भी रहा। ये वे बच्चे थे जिन पर किस्मत मेहरबान नहीं, जिनके मां-बाप उनके खेलने-खाने के साधन उपलब्ध कराने में असमर्थ हैं। स्कूल बैग के स्थान पर उनके कंधों पर कूड़े की थैली, या हाथों में जूठे बर्तनों का ढेर, खतरनाक केमिकल, शू पालिश और ब्रश, ईट पाथने के लिए मिट्टी ही दिखाई देती रही। बालश्रम उन्मूलन अधिनियम 1986 से सरकारी-गैर सरकारी सामाजिक संगठन या एनजीओ का अधिक सरोकार नहीं और फैक्टरी या दुकान मालिक इसके बारे में जानना नहीं चाहते। सस्ता मजदूर उन्हें बच्चों के रूप में ही मिल सकता है। बाल मजदूर सुरक्षा मानकों के बारे में नहीं बोलते, स्वास्थ्य की उन्हें चिंता होती नहीं, काम के घंटे ये नहीं पूछते। विभाग को तो मानो कोई चिंता ही नहीं। विडंबना देखिये कि जिले में कितने बाल श्रमिक हैं, यह डाटा संबंधित विभाग के पास नहीं। इससे भी दुखद पहलू यह है कि 1996-97 के बाद कोई सर्वे भी नहीं हुआ। श्रम विभाग के अधिकारियों, कर्मचारियों पर अन्य जिलों का अतिरिक्त बोझ है, कई पद खाली पड़े हैं। शिक्षा व समाज कल्याण विभाग को दुर्भाग्य के शिकार ऐसे बच्चों की पहचान व उन्हें स्कूलों में भेजने के अभियान की पहल करनी चाहिए। अकेला श्रम विभाग न तो इस दायित्व को संभाल पा रहा है और न ही ऐसा जज्बा दिखाई दे रहा। सबसे अधिक ध्यान उन बच्चों पर दिए जाने की जरूरत है जो 10 वर्ष से कम आयु के हैं। शिक्षा अधिकार कानून और भारी-भरकम बजट वाले सर्वशिक्षा अभियान का वास्तविक लक्ष्य तभी पूरा होता दिखाई देगा जब ऐसे बच्चों को स्कूल भेजा जाए, अभिभावकों को जागरूक किया जाए। बाल मजदूरों को स्कूलों में भेज कर उन्हें पाठ्य सामग्री मुफ्त देने के साथ मासिक आर्थिक मदद का भी प्रावधान किया जाए तो परिणाम निश्चित रूप से बेहतर रहेगा।