संजीदगी जरूरी

Posted in Friday, 19 August 2011
by Rajkiya Prathmik Shikshak Sangh - 421

स्वाधीनता दिवस पर मुख्यमंत्री ने शौर्य चक्र विजेताओं की पेंशन राशि देश में सर्वाधिक करने व स्वतंत्रता सेनानियों की पेंशन 11 से बढ़ाकर 15 हजार करने के साथ एक और महत्वपूर्ण घोषणा की जिसका लाभ प्रदेश के हर जिले को प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से मिलेगा। सरकारी स्कूलों में स्वच्छ एवं अध्ययन के लिए अनुकूल वातावरण तैयार करने के लिए मुख्यमंत्री विद्यालय पुरस्कार की घोषणा राज्य में शिक्षा विस्तार व उसका उच्च प्रतिस्पद्र्धात्मक स्तर तैयार करने में सहायक साबित होगी। राज्य में 14789 सरकारी स्कूलों के रूप में शिक्षा का मजबूत एवं विशाल तंत्र तो मौजूद है परंतु फिर वह निजी विद्यालयों के सामने न तो पास प्रतिशत और न ही मेरिट सूची में टिक पाता है। विडंबना देखिये कि वेतन व अन्य सुविधाओं के मामले में सरकारी अध्यापकों के सामने निजी स्कूलों के शिक्षक बौने नजर आते हैं। नई योजना में प्राथमिक, माध्यमिक, सेकेंडरी व सीनियर सेकेंडरी स्कूलों को हर वर्ष 50 हजार से पांच लाख तक का पुरस्कार मिल सकेगा। एक आम धारणा है कि जिस संस्थान के साथ सरकारी शब्द जुड़ जाता है, उसके साथ शिथिलता शब्द भी परोक्ष रूप से चस्पां हो जाता है। कारण है कि निजी संस्थानों के मुकाबले उनकी जवाबदेही के मानक कहीं नहीं ठहरते। सर्वप्रथम इस अवधारणा को तोड़ना होगा। ऐसा नहीं है कि सरकारी स्कूलों में प्रतिभा की कमी होती है। कमी है प्रतिभा को पहचानने व तराशने वालों की। हरियाणा की पहचान आज भी ग्राम प्रदेश के रूप में है। गांवों में संसाधनों के विस्तार के भरपूर प्रयासों के बाद भी अपेक्षित परिणाम सामने नहीं आ पा रहे। सर्वाधिक ड्राप आउट गांवों के सरकारी स्कूलों में हो रहा है, वह भी मिड डे मील और नाममात्र की फीस के बावजूद। मुख्यमंत्री विद्यालय पुरस्कार योजना का पहला लक्ष्य यही होना चाहिए कि ड्राप आउट न्यूनतम स्तर तक आए। पुरस्कार के मानकों में इस बात को भी शामिल किया जाना चाहिए। परीक्षा परिणाम, अनुशासन, प्रतिस्पद्र्धा, दैनिक उपस्थिति, विषय विशेष में श्रेष्ठता, सहायक गतिविधियों में भागीदारी, सामाजिक व पर्यावरण सरोकार आदि को मानकों के रूप में शिक्षक, ब्लॉक, उपमंडल व जिला शिक्षा अधिकारी की पदोन्नति के साथ जोड़ा जाना चाहिए। घोषणा से अधिक महत्वपूर्ण है अमल की प्रक्रिया। नई योजना सरकारी स्कूलों में शैक्षणिक माहौल को प्रगतिशील व प्रतिस्पद्र्धात्मक बनाएगी, इसमें संदेह नहीं परंतु अमल में संजीदगी व ईमानदारी दिखाई देनी चाहिए।