शर्तो की प्रासंगिकता

Posted in Saturday, 3 September 2011
by Rajkiya Prathmik Shikshak Sangh - 421

राज्य शिक्षक पुरस्कार के लिए जेबीटी अध्यापकों की अलग श्रेणी बना कर प्रदेश सरकार व शिक्षा विभाग ने प्रशंसनीय पहल की है। सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाला कोई भी शिक्षक पुरस्कार व प्रोत्साहन से वंचित न रहे, विभाग की इस महती योजना का अन्य विभागों पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ने की पूरी संभावना है। इससे निश्चित तौर पर क्षमता में वृद्धि के साथ प्रतिस्पद्र्धात्मक भावना का प्रचार-प्रसार होगा परंतु योजना बनाते समय यदि उसके व्यावहारिक पक्षों पर भी गहन मंथन कर लिया जाए तो लक्ष्य प्राप्ति के मार्ग की बाधाओं को न्यूनतम किया जा सकता है। जेबीटी अध्यापकों को राज्य पुरस्कार देने के लिए जो शर्ते रखी गई उनमें से कई नितांत अव्यावहारिक प्रतीत हो रही हैं। पहली बात तो यह कि 35 प्रतिशत से अधिक अध्यापक सीधे तौर पर इस पुरस्कार की दौड़ से बाहर रहेंगे। पात्रता की शर्तो में 15 वर्ष की सर्विस शामिल है जबकि वर्ष 2010 के अंत में एक साथ नौ हजार से अधिक जेबीटी अध्यापक भर्ती किए गए थे। राज्य में इस समय कुल 28 हजार जेबीटी अध्यापक कार्यरत और 13 हजार पद खाली हैं। यानी कुल स्वीकृत 41 हजार पदों के आधार पर आंका जाए तो सिर्फ 45 फीसद जेबीटी अध्यापक ही शिक्षक पुरस्कार की दौड़ में भागीदार बन पाएंगे। समग्रता या बहुसंख्यक प्रतिनिधित्व का सिद्धांत प्रतियोगिता पर लागू नहीं हो पाएगा। दूसरी सबसे बड़ी और अव्यावहारिक पात्रता शर्त एमफिल व पीएचडी की है। इस बात पर गौर किया जाना चाहिए कि मास्टर वर्ग में कितने प्रतिशत अध्यापक एमफिल या पीएचडी हैं। जेबीटी के लिए शैक्षणिक योजना दस जमा दो रही है। क्या ऐसा नहीं लगता कि यह शर्त जोड़कर जेबीटी अध्यापकों को प्रोत्साहन के बजाय उनमें कुंठा व हताशा भरने की कोशिश की गई है। जो शर्ते मास्टरों व स्कूल लेक्चरर श्रेणी पर लागू होनी चाहिए, उन्हें जेबीटी पर भी लाद कर शिक्षा विभाग आखिर किस कसौटी पर परखने की कोशिश करना चाहता है? शिक्षा विभाग को चाहिए कि तमाम व्यावहारिक खामियों, विसंगतियों को दूर करने के लिए तत्काल उपाय करे। शिक्षक पुरस्कार के लिए अध्यापक वर्ग वर्षभर इंतजार करता है। शिक्षक की यही लाइफ टाइम अचीवमेंट होती है। व्यावहारिक पहलुओं को श्रेष्ठ शिक्षक पुरस्कार के मुख्य मानकों में शामिल किया जाना चाहिए। वार्षिक परीक्षा परिणाम, छात्रों की उपस्थिति, अनुशासन, सामाजिक-सांस्कृतिक गतिविधियों में भागीदारी, शिक्षा-विज्ञान प्रतियोगिताओं में उल्लेखनीय प्रदर्शन को शिक्षक पुरस्कार घोषित करते समय विशेष तौर पर ध्यान में रखा जाना चाहिए