भद्दा मजाक

Posted in Monday, 30 January 2012
by Rajkiya Prathmik Shikshak Sangh - 421

कार्य की अधिकता, दिशाहीन विस्तार, विवेकहीन योजना, जवाबदेही की बेफिक्री या दायित्व की बेकद्री किसी विभाग, संस्थान या व्यक्ति विशेष को अजीब या कुछ मायनों में विचित्र रूप दे देती है। ऐसा ही कुछ शिक्षा विभाग के साथ हो रहा है। कुछ ऐसे लोगों के नाम पदोन्नति सूची में शामिल कर लिए जो सांसारिक यात्रा पूरी कर चुके। जिस सूची को लंबे अर्से के मंथन के बाद अंतिम रूप दिया गया हो, उसमें ऐसी चूक का सीधा सा अर्थ है कि विचार-विमर्श हुआ ही नहीं, इसके नाम पर महज खानापूर्ति की गई। जो त्रुटि आरंभिक दौर में हुई, वह अंतिम सूची तक जारी रही। यह घोर लापरवाही का जीता-जागता उदाहरण है। इतना ही नहीं सेवानिवृत्ति पा चुके कई प्रिंसिपल को बीईओ के रूप में पदोन्नत दिखाया गया। लापरवाही की इंतहा देखिये कि 187 पदोन्नत लोगों की सूची में 67 यानी एक तिहाई से अधिक की या तो मृत्यु हो चुकी या वे रिटायर हो चुके। शिक्षा विभाग की विचित्र कार्यशैली बार-बार उसे कठघरे में ला खड़ा कर रही है। इस फजीहत के कारणों की तह तक जाना होगा। कहां कमी रह जाती है? आरंभिक तैयारी में, योजना की प्रक्रिया, अमल की प्रणाली में, दूरदर्शिता की कमी अथवा व्यावहारिकता के आकलन में, समन्वय की कमी या नीतियों की अस्पष्टता, सामंजस्य की खामियां, तार्किक आधार पर लाभ-हानि के विश्लेषण में, अपेक्षा निर्धारण या दायित्व निर्वहण में, आखिर कहां? शिक्षा बोर्ड की परीक्षाओं के संचालन व परिणामों की घोषणा में विसंगतियों से लेकर व्यावसायिक कोर्सो, सर्वशिक्षा अभियान के तहत शुरू की गई परियोजनाओं, तकनीकी प्रोजेक्टों आदि के अधर में लटकने तक शिक्षा विभाग बार-बार बगलें झांकता नजर आता है। तमाम कमियों-कमजोरियों को दूर करके व्यवस्था को दुरुस्त करना विभाग की प्राथमिकताओं में सबसे ऊपर रखा जाना चाहिए। ताजातरीन उदाहरण में जिन्हें पदोन्नति दी गई उन्हें इसका कोई लाभ मिलने वाला नहीं। नियमानुसार कर्मचारी की मृत्यु या सेवानिवृत्त होने के बाद यदि पदोन्नति दी जाती है तो उसका लाभ उसे नहीं मिलता। इससे एक संकेत यह भी मिल रहा है कि पदोन्नति सूची को जानबूझ कर विलंबित रखा गया।